सरगुजा/सूरजपुर. सरगुजा संभाग अंतर्गत सूरजपुर जिले के प्रतापपुर विधानसभा क्षेत्र से भाजपा विधायक शकुंतला सिंह पोर्ते एक बार फिर बड़े विवाद के केंद्र में आ गई हैं. आदिवासी समाज ने उनके जाति प्रमाणपत्र को फर्जी और कूटरचित बताते हुए कड़ी नाराजगी जाहिर की है. समाज के प्रतिनिधियों ने प्रशासन पर कार्रवाई न करने का आरोप लगाते हुए चरणबद्ध आंदोलन की चेतावनी दी है. मामला हाईकोर्ट पहुंच चुका है, लेकिन अदालती आदेश के बावजूद अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया, जिससे राजनीतिक हलचल तेज हो गई है.
जाति प्रमाणपत्र पर गंभीर सवाल, पिता के दस्तावेजों की कमी
आरोपों के केंद्र में विधायक का अनुसूचित जनजाति (एसटी) जाति प्रमाणपत्र है, जिसके आधार पर वे आरक्षित सीट से 2023 के विधानसभा चुनाव जीतीं. आदिवासी समाज के नेताओं का दावा है कि यह प्रमाणपत्र विधायक के पिता या अपने मूल दस्तावेजों पर आधारित नहीं है, बल्कि पति पक्ष के आधार पर अवैध रूप से जारी किया गया. कानून के अनुसार, जाति प्रमाणपत्र केवल पिता की जाति पर निर्भर होता है, लेकिन मामले में कोई वैध प्रमाण उपलब्ध नहीं बताए जा रहे. समाज के प्रतिनिधि जयश्री सिंह पुषाम,आलोक,मुन्ना सिंह ने एक प्रेस वार्ता में कहा था, “यह प्रमाणपत्र फर्जी है. अंबिकापुर और बलरामपुर के रिकॉर्ड में इससे जुड़े कोई दस्तावेज नहीं मिले. जिल प्रशासन की प्रारंभिक जांच में भी इसकी प्रामाणिकता पर सवाल उठे हैं. उन्होंने विधायक और उनके पति पर मूल जातीय दस्तावेज छिपाने का आरोप लगाया. ग्रामीणों ने कलेक्टर के नाम अपर कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा है, जिसमें 7 दिनों के अंदर प्रमाणपत्र रद्द करने और जांच शुरू करने की मांग की गई है. ज्ञापन में स्पष्ट चेतावनी दी गई कि कार्रवाई न होने पर आंदोलन शुरू किया जाएगा.
हाईकोर्ट का आदेश, फिर भी प्रशासन मौन…यह विवाद नया नहीं है. हाईकोर्ट ने पहले ही इस मामले में जांच के आदेश दिए हैं, लेकिन प्रशासन की ओर से अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई. आदिवासी प्रतिनिधियों ने इसे आरक्षण व्यवस्था के साथ धोखा बताया. उनका कहना है, “यह केवल एक व्यक्ति का मुद्दा नहीं, बल्कि आदिवासी समाज की पहचान, अधिकार और संवैधानिक न्याय से जुड़ा है. फर्जी प्रमाणपत्र से चुनाव लड़ना सामाजिक न्याय की भावना का अपमान है. प्रतापपुर विधानसभा क्षेत्र, जहां 60 प्रतिशत से अधिक मतदाता आदिवासी हैं, में गोंड समाज की मजबूत पकड़ है. विधायक शकुंतला सिंह पोर्ते, जो पेशे से वकील हैं और भाजपा की पुरानी कार्यकर्ता, ने 2023 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी को 11,708 वोटों से हराया था. लेकिन अब यह विवाद उनकी साख पर सवाल खड़े कर रहा है.
राजनीतिक रंग, भाजपा-कांग्रेस के बीच तनाव…विपक्ष कांग्रेस ने इस मुद्दे को हाथों-हाथ लिया है. स्थानीय नेताओं ने कहा कि भाजपा सरकार आरक्षण के दुरुपयोग को बढ़ावा दे रही है. दूसरी ओर, भाजपा ने अभी तक विधायक के बचाव में कोई बयान नहीं दिया है. सोशल मीडिया पर भी यह मामला ट्रेंड कर रहा है, जहां यूजर्स आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं.
आदिवासी समाज ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि 7 नवंबर तक कार्रवाई न हुई, तो धरना-प्रदर्शन और चक्का जाम जैसे कदम उठाए जाएंगे. प्रशासन ने मामले को संज्ञान में लेने की बात कही है, लेकिन कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया. यह विवाद न केवल सूरजपुर बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ की राजनीति को प्रभावित कर सकता है.





