अंबिकापुर. छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में लखनपुर-उदयपुर सीमा पर बहने वाली रेंड नदी अवैध रेत उत्खनन का केंद्र बन चुकी है. रेत माफिया बिना किसी भय के प्रतिदिन सैकड़ों वाहनों में रेत का परिवहन कर रहे हैं, जबकि स्थानीय प्रशासन इस पर अंकुश लगाने में पूरी तरह नाकाम साबित हो रहा है. घाटों पर प्रति वाहन 100 से 200 रुपये की वसूली भी हो रही है, जिससे शासन को लाखों रुपये का नुकसान हो रहा है.
रेंड नदी के विभिन्न घाटों जैसे जजगा, जजगी, चैनपुर, कवलगिरी, सरगवा, तराजू, जंमगला, कोरजा, बगदर्री, मोहनपुर सहित अन्य स्थानों पर रेत माफिया दिन-रात अवैध उत्खनन चला रहे हैं. ये माफिया निकाली गई रेत को ट्रैक्टर-ट्रॉली और अन्य भारी वाहनों में लोड कर अंबिकापुर की ओर ले जाते हैं, जहां इसे ऊंचे दामों पर बेचकर मोटी कमाई कर रहे हैं. स्थानीय सूत्रों के अनुसार, यह कारोबार इतना संगठित है कि वाहन चालकों से घाटों पर ही प्रति वाहन 100 से 200 रुपये की अनौपचारिक वसूली की जाती है, जो माफियाओं की जेबें भरने का माध्यम बनी हुई है.
अवैध गतिविधियों का विस्तार…
रेंड नदी का यह इलाका आदिवासी बहुल क्षेत्र होने के बावजूद रेत माफियाओं का अड्डा बन गया है. माफिया नदी के तटों पर भारी मशीनरी का इस्तेमाल कर गहराई तक उत्खनन कर रहे हैं, जिससे नदी का पारिस्थितिकी तंत्र खतरे में पड़ गया है. नदी के किनारों पर गड्ढे बनने से बाढ़ का खतरा बढ़ा है, और स्थानीय मछुआरों व किसानों की आजीविका प्रभावित हो रही है. एक स्थानीय निवासी ने बताया, “माफिया रात के अंधेरे में तो सक्रिय रहते ही हैं, लेकिन दिन के उजाले में भी बिना किसी रोकटोक के वाहनों का काफिला चलता रहता है. प्रशासन की नजर इन पर पड़ती ही नहीं लगती.”
कमीशन सेट…
इस अवैध कारोबार की सूचना मिलने के बावजूद जिला प्रशासन व खनिज विभाग की ओर से कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो रही. पिछले कुछ महीनों में रेंड नदी के आसपास के क्षेत्रों में रेत माफियाओं के खिलाफ छिटपुट छापेमारी तो हुई, लेकिन वे जल्द ही वापस सक्रिय हो जाते हैं. उदाहरण के तौर पर, लखनपुर क्षेत्र में घरेलू उपयोग के नाम पर रेत लेने वाले ट्रैक्टर चालकों को भी जेल भेजा गया, लेकिन बड़े माफियाओं पर हाथ साफ रहा. इसी तरह, सरगुजा जिले की अन्य नदियों जैसे घुनघुट्टा व रेण नदी में भी अवैध रेत उत्खनन की खबरें सामने आती रहती हैं, जो पूरे जिले में माफियाओं की सक्रियता को दर्शाती हैं.
प्रशासन की नाकामी और राजस्व हानि…शासन की नीतियों के बावजूद रेत उत्खनन पर नियंत्रण लगाने में प्रशासन असफल नजर आ रहा है. छत्तीसगढ़ में रेत एक महत्वपूर्ण खनिज संसाधन है, और वैध लीज व पिट पास के माध्यम से इसका नियमन किया जाता है. लेकिन रेंड नदी जैसे क्षेत्रों में बिना अनुमति के उत्खनन से राज्य सरकार को करोड़ों का राजस्व नुकसान हो रहा है. विशेषज्ञों का मानना है कि माफियाओं का यह नेटवर्क स्थानीय स्तर पर ही संरक्षित है, जहां कुछ लोग वसूली के जरिए लाभ कमा रहे हैं. खनिज विभाग के अधिकारियों से जब इस बारे में संपर्क करने की कोशिश की गई, तो कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिला. लेकिन जमीन पर प्रभावी कार्रवाई की कमी साफ झलक रही है.
पर्यावरणीय व सामाजिक प्रभाव…अवैध उत्खनन न केवल आर्थिक हानि पहुंचा रहा, बल्कि पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचा रहा है. नदी के प्रवाह में बाधा आने से जल स्तर घट रहा है, जो आसपास के गांवों की जल आपूर्ति प्रभावित कर सकता है. इसके अलावा, माफियाओं की सक्रियता से स्थानीय निवासियों में डर का माहौल है. कुछ मामलों में, विरोध करने वालों को धमकियां भी मिल चुकी हैं. छत्तीसगढ़ में रेत माफिया की समस्या पुरानी है, बालरामपुर जिले में तो एक पुलिसकर्मी की मौत तक हो चुकी है, जब अवैध रेत परिवहन वाले ट्रैक्टर ने उसे कुचल दिया. सरगुजा में भी ऐसी घटनाओं का खतरा मंडरा रहा है.
क्या है समाधान..? विशेषज्ञों का सुझाव है कि ड्रोन सर्विलांस, नियमित छापेमारी और स्थानीय समुदाय की भागीदारी से इस समस्या पर अंकुश लगाया जा सकता है. साथ ही, वैध रेत घाटों को बढ़ावा देकर माफियाओं की कमर तोड़ी जा सकती है. जिला प्रशासन को तत्काल कदम उठाने होंगे, वरना रेंड नदी का यह काला कारोबार और फैल सकता है.
