अंबिकापुर. सुरगुजा जिले के मैनपाट ब्लॉक में स्थित कमलेश्वरपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की हालत बद से बदतर होती जा रही है. बारिश में छत से पानी टपकने की बजाय झरने की तरह बहता है, जिससे मरीजों और स्टाफ को गंभीर परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. महज तीन-चार साल पहले लाखों रुपये की लागत से बने इस भवन की गुणवत्ता पर सवाल उठ रहे हैं. स्थानीय लोग इसे भ्रष्टाचार और लापरवाही का नतीजा मानते हैं, जिसके चलते छत और दीवारों से पानी का रिसाव आम बात हो गई है.
मरीजों और स्टाफ की मुश्किलें…बारिश के मौसम में स्वास्थ्य केंद्र की स्थिति और दयनीय हो जाती है. छत से रिसता पानी इलाज में बाधा डालता है, दीवारों में सीलन फैल रही है, और बिजली के तारों में करंट का खतरा मंडरा रहा है. एक स्टाफ सदस्य ने नाम न जाहिर करते हुए बताया, “हम रोजाना इस समस्या से जूझते हैं. मरीजों को पानी से बचाने के लिए प्लास्टिक शीट्स का सहारा लेना पड़ता है, लेकिन यह कोई स्थायी हल नहीं है” मरीजों का कहना है कि इलाज के लिए आए तो हैं, लेकिन यहां की स्थिति से और बीमार पड़ने का डर सताता है.
प्रशासनिक लापरवाही और बेपटरी घोषणाएं...चार महीने पहले सीतापुर विधानसभा के विधायक रामकुमार टोप्पो ने डीएमएफ (डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन) फंड से 26 लाख रुपये की लागत से वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगवाने की घोषणा की थी. उन्होंने सुरगुजा कलेक्टर को इसकी पूरी जानकारी दी, लेकिन अब तक कोई प्रगति नहीं हुई. विधायक ने नाराजगी जताते हुए कहा, “स्वास्थ्य केंद्र की समस्या को मैंने गंभीरता से लिया और समाधान के लिए फंड की घोषणा की, लेकिन प्रशासन की उदासीनता से कोई काम नहीं हो रहा. यह जनता की सेहत का सवाल है, और इसमें देरी बर्दाश्त नहीं की जाएगी.” उन्होंने चेतावनी दी कि जल्द कार्रवाई न हुई तो वे उच्च स्तर पर शिकायत करेंगे.
अन्य अधूरी योजनाएं… स्वास्थ्य केंद्र के कंपाउंड में पेवर ब्लॉक लगाने की घोषणा भी लटकी पड़ी है. स्थानीय निवासियों का आरोप है कि प्रशासन की लापरवाही से स्वास्थ्य सेवाएं प्रभावित हो रही हैं. एक मरीज ने कहा, “हम इलाज के लिए भरोसा लेकर आते हैं, लेकिन पानी की समस्या और बदहाल इमारत देखकर डर लगता है”
भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा भवन…लाखों रुपये खर्च होने के बावजूद भवन की गुणवत्ता इतनी खराब होना गंभीर सवाल खड़े करता है. निर्माण में भ्रष्टाचार और गुणवत्ता की अनदेखी की वजह से आज मरीजों और स्टाफ को जोखिम में जीना पड़ रहा है.





