सरगुजा. गरीबों के खून चूसने वाले अस्पताल प्रबंधन के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया. जिले के अंबिकापुर शहर में संचालित सभी प्राइवेट अस्पतालों की लूट ने गरीबों की खून पसीने से कमाई रुपए लूट लेते है,इसके बाद पैसे न होने से अस्पताल से घर भगा दिया जाता है, और जिले के जिम्मेदार अफसरों की साठ गांठ से मामला रफा दफा हो जाता है,यह बात किसी से छुपी नहीं है. बीते दिनों पूर्व संकल्प हॉस्पिटल का मामला सामने आया था जहां, मरीजों के इलाज में लापरवाही से मौत भी हो चुकी थी,इसके पहले आशीर्वाद हॉस्पिटल से भी मामला आ चुका है,वहीं एकता हॉस्पिटल में भी मरीज के मौत के बाद परिजन हल्ला बोल कर चुके है, और अब शहर में बड़ी नाम कमा रहे महावीर अस्पताल का घिनौनी मामला सामने आया जहां अस्पताल प्रबंधन डॉ. सुधांशु किरण मरीजों को देखने राउंड लगा रहे तब, अस्पताल परिसर में भर्ती मरीज आंचल जिसे एक ओर 2 घंटो से गुलुकोज चढ़ी हुई थी इसके बाद भी तबियत और बिगड़ रही थी, जिसे लेकर परिजन परेशान हो उठे, इसी बीच राउंड लगा रहे डॉक्टर साहब परिजन के पास अगब्बुला होते हुए टूट पड़े जैसे उनकी जान ही निकाल लेंगे,इसके बाद मरीज के पिता नीरज वर्मा अपनी पुत्री के इलाज की सारे फाइल मांगते हुए इलाज कराने से मना कर दिए,तो फाइल देने से अस्पताल प्रबंधन ने साफ मना करते हुए,धक्का मार अस्पताल से बाहर निकाल दिया. मरीज की मां ने किसी तरह हाथ पैर पकड़ रोने लगी तब जाकर फाइल की फोटो खींचने की अनुमति दी गई.
थाने में नहीं मिली मदद,तो पीड़ित ने न्यायालय का खटखटाया दरवाजा..मिला न्याय
पीड़िता ने बताया, महावीर अस्पताल प्रबंधन के खिलाफ गांधीनगर थाना मे सितंबर माह 2023 में शिकायत दर्ज कराई थी,लेकिन थाना के जिम्मेदार अफसरों ने इनकी मदद नही कर पाई,इसके बाद पीड़ित ने मामले की शिकायत को लेकर न्यायालय में धारा 156(3) के तहत परिवाद दायर किया,इसके बाद न्यायिक मजिस्ट्रेट ने महावीर अस्पताल प्रबंधन के संचालक डॉ सुधांशु किरण के खिलाफ FIR दर्ज करने गांधीनगर थाने को आदेश जारी किया गया,वही डीएसपी कुमारी चंद्राकर ने बताया मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी गई है.
धारा 156(3) के तहत आप भी कर सकते है परिवाद दायर…
पढ़े लिखे जागरूक लोगों ने अपनी हक की लगाई लड़ लेते है,लेकिन निजी अस्पताल प्रबंधन की झांसे में दूर दराज से आए गरीब तबके के लोग आ जाकर, फंस जाते है,जिसका नतीजा अक्सर देखा जाता है,यह खेल सरगुजा संभाग के सबसे बड़े अस्पताल जिला अस्पताल से शुरू होकर निजी अस्पताल तक पहुंचता है,जो बीच के मेडियेटर होते है,सरकारी अस्पतालों में पदस्थ डॉक्टरों की मिली भगत से यह खेल फलता फूलता है,जिसपर आज तक किसी भी राजनेता सहित बड़े जिम्मेदारों ने शिकंजा कस नही सका.





